Phulera Dooj २०२३:
फूलेरा दूज के त्यौहार को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की खास रूप से पूजा-अर्चना की जाती है तथा उनसे प्रार्थना की जाती है की प्रभु हमारे परिवार में भी हमेशा प्रेम और स्नेह बना रहे ।
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सनातन धर्म में प्रत्येक माह का ही महत्व होता है। जैसा की हमने पहले भी बताया है की हर एक माह में कुछ ऐसे व्रत एवं त्यौहार होते हैं, जिनको मुख्य रूप से मनाया जाता है, इन्हीं में से एक है फाल्गुन माह। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फूलेरा दूज के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष २०२३ में फूलेरा दूज २१ जनवरी २०२३ के दिन मंगलवार को पड़ रही है।
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प्रत्येक वर्ष में कुछ स्वयं सिद्ध और अभिजीत मुहूर्त होते हैं जिनमे बिना ज्योतिष्य विचार किये कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं उनमे से एक फुलेरा दोयज को मन जाता है। फाल्गुन मास में आने वाला ये त्योहार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है। इस पर्व को होली पर्व का शुभारंभ भी माना जाता है और लोग प्रत्येक दिन होली खेलते हैं । कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं।
फूलेरा दूज २०२३ (phulera dooj 2023 date) तिथि एवं मुहूर्त:
इस वर्ष फूलेरा दूज 21 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को सुबह ०७ बजकर ३४ मिनट से शुरू होकर अगले दिन २२ जनवरी बुधवार को रात ०४ बजकर ३७ मिनट तक रहेगा । ऐसे में २२ जनवरी को उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए फूलेरा का त्योहार इसी दिन मनाया जाएगा।
कैसे मनाएं फुलेरा दूज?
घरों में और मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है तथा विभिन्न प्रकार के पुष्पों का समावेश किया जाता है। पूजा के समय भगवान कृष्ण को होली खेले जाने वाला गुलाल अर्पित किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की मूर्तियों को विभिन्न प्रजार के फूलों से सजाया जाता है। कई जगह इस दिन फूलों की रंगोली भी बनायी जाती है।
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इस पर्व की खास रौनक ब्रजभूमि और मथुरा के मंदिरों में देखने को मिलती है। सारे धाम को फूलों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे के साथ फूलों से ही होली खेलते हैं। इस दिन से होली तक यह धूमधाम लगातार जारी रहती है। मंदिरों में श्री कृष्ण का कीर्तन किया जाता है जिनमे श्री कृष्ण और राधा रानी की भजन गए जाते हैं और भक्तजन भक्तिमय होकर प्रभु का गुणगान करते हैं।
Phulera Dooj फुलेरा दूज के दिन विशेष उपाय:
इस पवित्र दिन पर राधा रानी को श्रृंगार की वस्तुएं जरूर अर्पित करें और उनमें से श्रृंगार की कोई एक वस्तु अपने पास संभाल कर रख लें। मान्यता है कि ऐसा करने से जल्द विवाह हो जाता है तथा विवाह में आ रही अडचने दूर हो जाती हैं।
बरकुले बनाने की प्राचीन परंपरा :
होलिका दहन में गाये के गोबर से बने बरकुले या उपलों को जलाने की विशेष परंपरा है। ऐसा करने से वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा हवा में उपस्थित कीटाणु नष्ट हो जाते हैं | गाय के गोबर के छोटे-छोटे चाँद, नाँव, बरकुले और विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाकर एक माला तैयार कर ली जाती है। फिर इस माला को होलिका दहन वाले दिन अग्नि में डाल देते हैं। जिनको बनाने का काम फुलेरा दूज से शुरू हो जाता है।
फुलेरा दूज (Phulera Dooj) की पौराणिक कथा, कैसे हुई फुलेरा दूज पर फूलों की होली खेलने की शुरुआत:
शास्त्रों में राधारानी को प्रकृति और प्रेम की देवी माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्ण अपने कामोंं में इतने व्यस्त हो गए कि लंबे समय तक राधारानी से मिलने नहीं जा सके। इससे राधा रानी काफी दुखी हो गईं. राधा के दुखी होने से गोपियां भी कृष्ण से रुष्ट हो गईं. इसका असर प्रकृति में दिखने लगा, पुष्प और वन सूखने लगे। प्रकृति का नजारा देखकर श्रीकृष्ण को राधा की हालत का अंदाजा लग गया।
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इसके बाद वे बरसाना पहुंचे और राधारानी से मिले। इससे राधारानी प्रसन्न हो गईं। चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। प्रकृति को मुस्कुराते देख श्रीकृष्ण ने एक पुष्प तोड़ा और राधारानी पर फेंक दिया। इसके बाद राधा ने भी कृष्ण पर फूल तोड़कर फेंक दिया। फिर गोपियों ने भी फूल फेंककर एक दूसरे पर फेंकने शुरू कर दिए। हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई और सारा माहौल खुशी और उल्लास में बदल गया। वो दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया का था। तब से इस दिन को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाने लगा। ब्रज में इस दिन श्रीराधारानी और श्रीकृृष्ण के साथ फूलों की होली खेलने का चलन शुरू हो गया।
जग सुखी तो हम सुखी
प्रेम से बोलो राधे राधे