मेरी शादी क्यों नहीं हो रही है:
आज कल और (and) हमेशा से हर किसी के मन में बस एक ही चिंता रही है की (that) मेरी शादी कब होगी ? कोई गूगल का सहारा लेता है तो कोई पंडितों का क्यों की(because) यह सवाल हर किसी के मन में आना प्राकृतिक है क्यों की (because) जीवन भर की बात है | अगर (if) जीवनसाथी अच्छा मिला तो (then) सब कुछ अच्छा अन्यथा(otherwise) मानसिक अशांति बानी रहती है | तो (so) आइये आज बात करते हैं और (and) समझते है की किसकी(whose) शादी के योग कब बनते हैं और (and) उनके न बनने के क्या – क्या कारण है ?
मेरी शादी कब होगी (Meri Shadi Kab Hogi):
जब (when) ये प्रश्न आपके मन में आये तो (then) आप अपनी कुंडली में सातवें घर का अध्यन करें और (and) ऐसा करने से आपको पता चलेगा की(that) किस (which) कारण से आपकी शादी में रुकावटें आ रही है क्यों की (because) सातवा घर ही विवाह का निर्धारण करता है | उसको बहुत ही गहनता से समझना चाहिए की (that) किस गृह की दृष्टि सातवें घर पर पड़ रही है तथा (and) सातवें घर का स्वामी किस (which) भाव में स्थित है तथा (and) उसकी वहां पर क्या (what) स्थिति कैसी है ? जब (when) आपको ये समझ में आ जाएगा तो (then) आप आसानी से ये निर्धारण कर सकते हैं की (that) विवाह में देरी के क्या क्या (what) कारण हैं तथा (and) क्या उपाय करने से उनको दूर किया जा सकता हैं |
आज हम विस्तार से जानेंगे की (that) आपकी शादी किस उम्र में होगी? शादी किस दिशा में होगी? जीवनसाथी का व्यवसाय होगा या (or) नौकरी? तथा शादी के बाद आपका जीवन कैसा होगा? meri shadi love hogi ya arrange? meri shadi kab hogi google bataiye?
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जन्मकुण्डली का सातवा घर शादी का होता है और (and) शुक्र और (and) गुरु को विवाह का कारक माना जाता है | अर्थात (i.e.) गुरु और (and) शुक्र की स्थिति से विवाह का निर्धारण किया जा सकता हैं
कौन से गृह के कारण कब होती हैं शादी?
- जन्मकुण्डली मे ४ ग्रह शुभ मने जाते हैं और (and) वह ग्रह हैं – गुरु, शुक्र, बुध, चंद्र |
- जन्मकुण्डली मे यह ४ ग्रह पाप या (or) अशुभ ग्रह माना जाते हैं – शनि, मंगल, राहू, केतू, सूर्य
- पाप ग्रह – यह ग्रह शादी मे देरी का कारण बनते हैं |
- शुभ ग्रह – यह ग्रह शादी जल्दी और (and) समय से करवाने का कारण बनते हैं |
अब जानते हैं की किस गृह के किस स्थान में होने से विवाह पर क्या प्रभाव पड़ता हैं:
- कुंडली में ७वे स्थान पर बुध ग्रह का होना – आप पहले यह जान ले कुंडली मे जो (what) ७वां स्थान होता है वह ही शादी के लिए होता है | अगर (if) सातवे स्थान पर बुध मौजूद हो तो (then) समझिए शादी का योग जल्दी बनेगा | अगर (if) इस स्थान पर शुक्र भी (also) है तो (then) भी शादी का योग जल्दी बन जाता है
- सातवे स्थान पर कुंडली मे सूर्य का होना – अगर (if) ७वे स्थान पर कुंडली मे अगर (if) सूर्य बलवान है तो शादी मे रुकावट का कारण बनता है या (or) फिर शादी मे रुकावट या (or) अड़चन आती है
- ७वे स्थान पर कुंडली मे मंगल का होना – अगर ७वे स्थान पर कुंडली मे मंगल मौजूद है तो(then) मांगलिक दोष बनता है शादी मे देरी हो सकती है साथ ही (along with) इसे अशुभ भी(also) माना जाता है
- सातवे स्थान पर कुंडली मे गुरु का होना – यदि (if) ७वे स्थान में गुरु विद्यमान है तो (then) शादी की उम्र 24 से 26 साल मे हो जाती है | वही अगर (if) शनि बलवान है तो (then) शादी मे देरी का कारण बनेगा | गुरु के होने से शादी मे देरी होने का कारण यह की आपके उम्र के सभी लोगो की शादी हो चुकी होगी | इतना ही नहीं आपसे जो(who) छोटे होंगे उनका भी विवाह आपसे पहले हो चुका होगा
आइये जानते हैं की किस साल में शादी होने के योग किस गृह के कारण बनते हैं?
२० से २५ वर्ष की उम्र में शादी:
सातवें घर में यदि (if) बुध बैठा हैं तो विवाह में आने वाली रुकावटें स्वतः ही दूर हो जाती हैं और विवाह २० से २५ वर्ष की उम्र में होने की सम्भावनायें प्रबल हो जाती हैं और (and) यदि (if) बुध पर किसी अन्य गृह की दृष्टि न हो तो (then) जातक का वाह २० वर्ष की आयु में होता हैं और (and) यदि (if) सूर्य ६वें या ८वें स्थान में या (or) बुध के साथ हो तो (then) २ साल का विलम्ब होने की संभावना रहती हैं अर्थात (i.e.) २२ वें साल में शादी का योग बनता हैं और (and) यदि (if) सूर्य क्षीर्ण हो तो २१ वें साल में शादी का योग बनता हैं
२५ से २७ साल की उम्र में शादी:
यदि (if) शुक्र, गुरु या चंद्र कुंडली में ७ वें भाव में हैं तो (then) शादी २४ या २५ वे साल में होने की संभावनाएं होती हैं |
यदि (if) जातक के कुंडली में गुरु ७ वें घर में हैं तो (then) शादी २५ वें साल में होती हैं और (and) यदि (if) गुरु पर मंगल या (or) सूर्य का प्रभाव हो तो १ साल के विलम्ब से होती हैं और (and) यदि (if) गुरु पर राहु और (and) शनि का प्रभाव हो तो (then) २ साल के विलम्ब से अर्थात (i.e.) २७ वे साल में होती है|
शुक्र ७ वें भाव में हो और (and) शुक्र पर सूर्य और (and) मंगल का प्रभाव हो तो (then) विवाह में २ साल का विलम्ब निश्चित है अर्थात (means) विवाह २७ वे साल में | यदि (if) शनि का प्रभाव हो तो (then) विवाह में १ साल का विलम्ब यानि २६ वें साल में और(and) यदि(if) राहु का प्रभाव शुक्र पर हो तो (then) २ साल का विलम्ब होता है अर्थात (means) २७ वें साल में विवाह होता है |
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चंद्र ७ वें भाव में हो और (and) चंद्र पर सूर्य और (and) मंगल का प्रभाव हो तो (then) विवाह (मेरी शादी) २६ वें साल में होने का योग बनता है और (and) यदि (if) शनि का प्रभाव मंगल पर हो तो (then) शादी में ३ साल का विलम्ब होता है | राहु का प्रभाव होने पर २७ साल के बाद काफी व्यवधानों के बाद (after) विवाह होता है |
जातक की कुंडली में यदि (if) ७ वें घर में सूर्य हो और (and) उस पर किसी अशुभ गृह का प्रभाव या (or) दृष्टि न हो तो २७ वे वर्ष में शादी का योग बनता है | यदि (if) सूर्य के साथ में कोई शुभ गृह है तो २७ से पहले भी योग बनता है |
२८ से ३२ वें वर्ष में विवाह योग:
मंगल, राहु और केतु में से कोई एक भी(also) गृह यदि ७ वें भाव में हो तो (and) शादी (मेरी शादी ) में देर होने की पूरी सम्भावनायें होती हैं | जितने अशुभ गृह इस भाव में होते हैं विवाह में उतनी ही(such as) अधिक देरी होती है |
मंगल, राहु और (and) केतु में से कोई एक भी गृह यदि ७ वें भाव में हो तो (and) शादी में देर होने की पूरी सम्भावनायें होती हैं | जितने अशुभ गृह इस भाव में होते हैं विवाह में उतनी ही अधिक देरी होती है | मंगल ७ वें भाव में हो तो (then) २७ वे वर्ष से पहले विवाह होने नहीं देता | और (and) राहु यहाँ पर होने से आसानी से विवाह (मेरी शादी) नहीं होने देता | हर बार बात पक्की होने के बाद (after that) रिश्ता टूट जाता है | केतु ७ वे घर में होने से गुप्त शत्रुओं के कारण विवाह में मुश्किल होती है |
शनि ७ वे घर में हो तो (then) जीवन साथी बहुत ही समझदार और(and) विश्वशनीय होता है ७ वे घर में शनि विवाह का योग बनता है परन्तु (but) विवाह में देरी होना संभावित होता है | शनि ७ वे भाव में होतो (then) अधिकतर शादी ३० वर्ष के बाद ही होती है |
३२ से ४० वे वर्ष की उम्र में विवाह:
जब एकसे ज्यादा अशुभ गृह ७ वें भाव होते है या (or) उनका प्रभाव एक साथ होता है | अर्थात (that’s why) शनि, मंगल, शनि राहु, मंगल राहु, शनि सूर्य, सूर्य मंगल या (or) सूर्य राहु एक साथ ७ वें या ८ वें भाव में हो तो (then) विवाह में बहुत अधिक विलम्ब के सम्भावना रहती है | तथा इसके अतिरिक्त (except) प्रतियेक गृह के अपने स्वाभाव, प्रभाव (मित्रता या शत्रुता) पर बहुत कुछ निर्भर करता है परन्तु (but) यदि (if) ये गृह ७ घर में हो तो (then) इनकी युति से जल्दी विवाह (मेरी शादी) होने की कोई सम्भावना नहीं होती |
घर से कितनी दूरी पर होगी शादी:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर (if) आपकी कुंडली के सप्तम भाव यानी (like) विवाह के घर में वृष, सिंह, वृश्चिक और (and) कुंभ राशि स्थित है तो (then) शादी आपके घर से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी। अगर (if) इस जगह चंद्र, शुक्र तथा (and) गुरु हों तो ऐसे में लड़की की शादी घर के आसपास ही होती है।
इसी के साथ (along with this) अगर (if) सप्तम भाव में मेष, कर्क, तुला और मकर है तो आपका ससुराल घर से 200 किमी के अंदर होगा। वहीं अगर (if) इस स्थान पर मिथुन, कन्या, धनु या (or) फिर मीन स्थित है तो शादी घर से 80 से 100 किमी की दूरी पर होती है।
कौन दिशा में होगी आपकी शादी:
राशि | स्वामी | दिशा |
मेष, वृष्चिक | मंगल | दक्षिण |
वृष, तुला | शुक्र | आग्नेय कोण |
मिथुन, कन्या | बुध | उत्तर |
कर्क | चंद्रमा | वायव्य कोण |
सिंह | सूर्य | पूर्व |
धनु, मीन | गुरु | ईशान |
मकर, कुम्भ | शनि | पश्चिम |
मतान्तर से मिथुन के स्वामी राहु व धनु के स्वामी केतु माने गए हैं तथा (and) इनकी दिशा नैऋत्य कोण मानी गयी है।
विवाह दिशा निर्धारण में विद्वानों के दो मत हैं। प्रथम मत के अनुसार शुक्र के सातवें स्थान का स्वामी जिस (which) दिशा का अधिपति होता है, उसी दिशा में कन्या (बेटी) का विवाह (मेरी शादी) होता है। दूसरे मत के अनुसार सप्तमेश जिस ग्रह के घर में बैठा होता है, then उस ग्रह की दिशा में ही कन्या का विवाह होता है। प्रकारान्तर से दोनों मत मान्य हैं।
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प्रथम मत कभी-कभी(sometimes) गलत भी (also) हो सकता है परन्तु (but) दूसरा मत बड़ा ही सटीक है। अतः (so) इसी मत के विषय में यहां विस्तार से बताया जा रहा है। सप्तमेश अगर सूर्य हो और (and) वह अपनी ही राशि में बैठा हो अथवा (or) कोई भी ग्रह सप्तमेश होकर सिंह राशि में बैठा हो तो (then) पूर्व दिशा में विवाह होगा अथवा (or) इसके ठीक उल्टा पश्चिम दिशा में होगा। सप्तमेश अगर (if) कर्क राशि में बैठा हो तो (then) पश्चिमोत्तर दिशा में अर्थात (that’s why) वायव्य कोण में अथवा (or) इसके ठीक विपरीत अग्निकोण (पूर्व-दक्षिण के कोण) पर विवाह का योग होता है। सप्तमेश यदि (if) मंगल की राशि मेष अथवा (or) वृश्चिक में बैठा हो तो (then) दक्षिण दिशा में अथवा (or) इसके ठीक (just) विपरीत उत्तर दिशा में विवाह होता है।
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सप्तमेश यदि (if) बुध की राशि मिथुन अथवा (or) कन्या में बैठा हो तो उत्तर अथवा (or) दक्षिण दिशा में कन्या का विवाह होना बताया जाता है। सप्तमेश अगर गुरू की राशि धनु अथवा (or) मीन में हो तो (then) विवाह ईशान कोण अर्थात (i.e.) पूर्वोत्तर (नैत्रृत्य) दिशा में विवाह होने का योग बनता है। सप्तमेश यदि (if) शुक्र की राशि वृष या (or) तुला में स्थित हो तो (then) विवाह आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) अथवा (or) वायव्य (पश्चिमोत्तर) दिशा में होता है। सप्तमेश अगर(if) शनि की राशि मकर अथवा (or) कुम्भ में स्थित हो तो(then) पश्चिम दिशा अथवा (or) ठीक उल्टा पूर्व दिशा में विवाह होना चाहिए।
अगर (if) सप्तमेश केतु से प्रभावित हो तो (then) ससुराल के लोग पितृ पक्ष से आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं। and विवाह के पश्चात (after) कन्या काफी सुखी रहती है तो (then) वह मालकिन बनकर ससुराल वालों के हृदय पर राज्य करती रहती है।
आपको कुछ और(and) जानकारी लेनी हैं तो(then) आप हमसे सीधे संपर्क भी कर सकते हैं जो (what) जानकारी ऊपर दी गयी है वो अनुभव के आधार पर ज्ञात हुई है मोटे तौर पर ये नियम काम करते हैं किसी ज्ञानी ज्योतिष से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक होता है|
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कालसर्प दोष के कारण भी विवाह में देरी होती है . यहाँ पढ़े….
प्रेम से बोलो राधे राधे
जग सुखी तो हम सुखी