प्रिय मित्रों राधे राधे ,
मेरा ये एक प्रयास है की सभी सुखी और समृद्ध रहें इसलिए मैं आपको अपने द्वारा हर संभव तरीके से बताना चाहता हूँ की जन्म कुंडली का अध्धयन करके बहुत सी आने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है I अतः जन्म कुंडली का कम से कम प्राथमिक ज्ञान होना अति आवश्यक है ताकि आप सभी को जरुरी जानकारी रहे I हमारा उद्देश्य है आपको सही मार्ग दर्शन करना I
मेरा वैदिक एस्ट्रोलॉजी को समझने और सीखने का एकमात्र उदेशय यही था की प्राणी मात्र का हर संभव मार्गदर्शन कर सकूँ I आप निश्चिन्त होकर जब भी चाहे बात कर सकते हैं I
आइए आज समझते हैं की क्या होती हैं जन्म कुंडली और क्या मुख्य तथ्य होते हैं कुंडली में ?
कुंडली बनाने के लिए सर्व प्रथम हमें अपना जन्म समय (Birth Time) , स्थान (Place) और दिनांक (date) का ज्ञान होने आवश्यक हैं ताकि हम पंचांग के द्वारा ज्योतिष्य गणना करके ये पता लगा सके की उस समय क्या लग्न था , क्या नक्षत्र था बाकि सब कुछ तो हमें जन्म कुंडली बता देती हैं I उसके बाद हमें ज्योतिष जी से सर्व प्रथम ये पूछना चाहिए की उस समय कोई मूल नक्षत्र तो नहीं था अगर मूल नक्षत्र था तो उसके निवारण के पश्चात् की घर में मंगल कार्य करने चाहिए तब तक सूतक लगा माना जाता हैं अगर किसी को नहीं पता की सूतक क्या होता हैं तो आपके बुजुर्ग जो घर में होते हैं वो बहुत अच्छी तरह जानते हैं अगर इसके बाद भी कोई शंका हैं मन में तो हमें बेझिझक फ़ोन कर सकते हैं हमें बहुत प्रसन्नता होगी I
छठी और जसूठन
अगर कुंडली मूल नक्षत्र से मुक्त हैं तो आप छठी और जसूठन ज्योतिष्य परामर्श से कर सकते हैं बाहरी निकालने का भी अपना एक अलग महत्त्व हैं जो गुरुवार या रविवार को निकाल सकते हैं I एक बात और बाहरी निकालने की परंपरा बहुत प्राचीन हैं और उसको केवल पुत्र जन्म के समय ही निकालते हैं I आज कल पुत्र और पुत्री सब बराबर हैं परन्तु प्राचीन मान्यताओ के अनुसार पुत्र जन्म पर बाहरी निकालते हैं I
घर में जब भी कोई संतान होती हैं तो यह एक बहुत ही ख़ुशी की बात हैं क्यों की संतान भी एक वृक्ष के समान हैं जो नयी पीढ़ी को जन्म देती हैं इसलिए उनके जन्म पर मंगल गीत और भजन कीर्तन जरूर करने चाहिए इसका एक बहुत गहरा सम्भन्ध होता हैं जो हम आगे बताएँगे I
अगर आपको प्राचीन भजन चाहिए तो हम आने वाले लेख में उनको जरूर शेयर करेंगे I हमें कमेंट करके बताये I
कितने गृह होते हैं किंडली में, भाव और राशि का क्या तात्पर्य हैं ?
आइये जानते हैं की जन्म कुंडली में कितने गृह होते हैं वास्तव में वैदिक ज्योतिष में कुंडली में
- सूर्य
- चंद्
- मंगल
- बुध
- गुरु
- शुक्र
- शनि
- राहु
- केतु
जन्म कुंडली में सूर्य का स्वाभाव:
सूर्य ग्रह जातक के जीवन में 22 वर्ष की आयु में अपना प्रभाव दिखाता है। सूर्य एक पुरुष ग्रह है और इसका प्रभावी समय दिन का होता है। यदि कुंडली सूर्य उच्च का है और शुभ है तो जातक को पिता एवं सरकारी क्षेत्र से लाभ प्राप्त होता है और यदि यह नीच अवस्था में है, तो यह विपरीत परिणाम दिखायेगा।
जन्म कुंडली में चंद्र का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में मंगल का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में बुध का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में गुरु का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में शुक्र का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में शनि का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में राहु का स्वाभाव:
जन्म कुंडली में केतु का स्वाभाव:
आइये अब जानते हैं राशियों और भावो के बारे में:
भाव और उनके स्वामी इस प्रकार हैं:
- प्रथम का स्वामी गृह मंग
- द्वितीय का स्वामी गृह शुक्र
- तृतीय का स्वामी गृह बुध
- चतुर्थ का स्वामी गृह चंद्र
- पंचम का स्वामी गृह सूर्य
- षष्ठ का स्वामी गृह बुध
- सप्तम का स्वामी गृह शुक्र
- अष्ठम का स्वामी गृह मंगल
- नवम का स्वामी गृह गुरु
- दशम का स्वामी गृह शनि
- एकादश का स्वामी गृह शनि
- द्वादश का स्वामी गृह गुरु
उपरोक्त भाव और उनके स्वामी के बारे में पढ़ेंगे I तथा यह भी अध्यन करेंगे की एक गृह अलग अलग भावों में क्या प्रभाव डालते हैं इस गणना से हम जातक के सम्पूर्ण जीवन के बारे में जान सकते हैं
आइये भाव के प्रकारों के बारे में जानते हैं :
- केन्द्र भाव: वैदिक ज्योतिष में केन्द्र भाव को सबसे शुभ भाव माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार यह लक्ष्मी जी की स्थान होता है। केन्द्र भाव में प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव और दशम भाव आते हैं जो की जन्म कुंडली में केंद्र में स्थित हैं । शुभ भाव होने के साथ-साथ केन्द्र भाव जीवन के अधिकांश क्षेत्र को दायरे में लेता है। केन्द्र भाव में आने वाले सभी ग्रह कुंडली में बहुत ही मजबूत माने जाते हैं। इनमें दसवाँ भाव करियर और व्यवसाय का भाव होता है। जबकि सातवां भाव वैवाहिक जीवन को दर्शाता है और चौथा भाव माँ और आनंद का भाव है। वहीं प्रथम भाव व्यक्ति के स्वभाव को बताता है। यदि आपकी जन्म कुंडली में केन्द्र भाव मजबूत है तो आप जीवन के विभिन्न क्षेत्र में सफलता अर्जित करेंगे और कठिनायों पर विजय प्राप्त करेंगे।
- त्रिकोण भाव: वैदिक ज्योतिष में त्रिकोण भाव को भी शुभ माना जाता है। दरअसल त्रिकोण भाव में आने वाले भाव धर्म भाव कहलाते हैं। इनमें प्रथम, पंचम और नवम भाव आते हैं। प्रथम भाव स्वयं का भाव होता है यानि जातक के व्यव्हार के विषय में इसी भाव से ज्ञात किया जाता हैं । वहीं पंचम भाव जातक की कलात्मक शैली को दर्शाता है जबकि नवम भाव सामूहिकता का परिचय देता है। ये भाव जन्म कुंडली में को मजबूत बनाते हैं। त्रिकोण भाव बहुत ही पुण्य भाव होते हैं केन्द्र भाव से इनका संबंध राज योग को बनाता है। इन्हें केंद्र भाव का सहायक भाव माना जा सकता है। त्रिकोण भाव का संबंध अध्यात्म से है। नवम और पंचम भाव को विष्णु स्थान भी कहा जाता है।
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उपचय भाव:
जन्म कुंडली में तीसरा, छठवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ भाव उपचय भाव कहलाते हैं। ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि ये भाव, भाव के कारकत्व में वृद्धि करते हैं। यदि इन भाव में अशुभ ग्रह मंगल, शनि, राहु और सूर्य विराजमान हों तो जातकों के लिए यह अच्छा माना जाता है। ये ग्रह इन भावों में नकारात्मक प्रभावों को कम करते हैं।
- मोक्ष भाव: जनम कुंडली में चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को मोक्ष भाव कहा जाता है। इन भावों का संबंध अध्यात्म जीवन से है। मोक्ष की प्राप्ति में इन भावों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
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धर्म भाव:
जन्म कुंडली में प्रथम, पंचम और नवम भाव को धर्म भाव कहते हैं। इन्हें विष्णु और लक्ष्मी जी का स्थान कहा जाता है।
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अर्थ भाव:
कुंडली में द्वितीय, षष्ठम एवं दशम भाव अर्थ भाव कहलाते हैं। यहाँ अर्थ का संबंध भौतिक और सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयोग होने वाली पूँजी से है।
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काम भाव:
कुंडली में तीसरा, सातवां और ग्यारहवां भाव काम भाव कहलाता है। व्यक्ति जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में तीसरा पुरुषार्थ काम होता है।
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दु:स्थान भाव:
कुंडली में षष्ठम, अष्टम एवं द्वादश भाव को दुःस्थान भाव कहा जाता है। ये भाव व्यक्ति जीवन में संघर्ष, पीड़ा एवं बाधाओं को दर्शाते हैं।
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मारक भाव:
कुंडली में द्वितीय और सप्तम भाव मारक भाव कहलाते हैं। मारक भाव के कारण जातक अपने जीवन में धन संचय, अपने साथी की सहायता में अपनी ऊर्जा को ख़र्च करता है।
“ये सभी भाव ग्रहो के एक दुसरे से युति से प्रभावित होकर अपना फल बदलते रहते हैं जिसका आप एक ज्योतिष्य परामर्श से उपाय कर सकते हैं “
१२ (बारह) भावों का जो चार्ट ऊपर दिया गया हैं वो साफ साफ और बहुत ही संछेप में हर भाव का क्या महत्त्व हैं वो दर्शा रहा हैं आप उसको एक बार अध्यन जरूर करें और भाव विचार के बारे में जाने की इस भाव में अगर मित्र गृह बैठा हैं या दृष्ट हैं अन्यथा उस भाव का स्वामी अपनी मित्र राशि में बैठा है या शत्रु रही में बैठकर प्रबल अथवा दुर्बल हो रहा हैं तो उसके अनुसार ही उस भाव और स्वामी गृह का फल जाने I
अब जानते हैं मित्र और शत्रु गृह इस चार्ट के माध्यम से :
उपरोक्त गृह चार्ट से बहुत ही साफ साफ ज्ञात किया जा सकता हैं की जन्म कुंडली में कौन सा गृह किस से मित्रता रखता हैं, किससे शत्रुता और किससे समता का भाव रखता हैं I और उनके फल ग्रहो के स्वाभाव और दशा पर निर्भर करता हैं अर्थात उस समय कौन सा गृह कमजोर हैं , नीच का हैं या उच्च का हैं
जग सुखी तो हम सुखी
सौरभ शुक्ल (ज्योतिष शास्त्री)
प्रेम से बोलो राधे राधे
Once I want to know about myself from my horoscope, now a days I am going through a lot of troubles in life.
Please help me when u r free 🙏🏻🙏🏻
राधे राधे शिवम् जी,
कृपया अपनी जन्म details बताएं. जन्म दिनांक, जन्म समय, स्थान
Shivam Ji, You can call me.
13-09-1990
Dhar(MP)
9:05 am
Radhe Radhe