Nadi Dosh: जब भी हम जन्मकुंडली मिलान कराने पंडित जी के पास जाते हैं तो सबसे पहले हमारा प्रश्न यही होता है की दोनों कुंडली ठीक हैं न किसी तरह का कोई लाग लपेट तो नहीं है अर्थात किसी तरह का कोई दोष तो नहीं है जिससे दोनों के वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी आये । क्यूंकि हर किसी को मन में डर रहता है की हमारे बच्चों का जीवन हमेशा सुखमय बना रहे । इसी असमंजस को मन से मिटाने के लिए विवाह पूर्व जन्मकुंडली का मिलाना अति आवश्यक हो जाता है
और इसके लिए प्रारंभिक तौर पर हम गुण मिलान करते हैं जो की कम से कम १८ होने चाहिए, तभी आगे अन्य पहलुओं पर विचार करना चाहिए । कुंडली मिलान में गुणों के बाद जिसको जरुरी मानते हैं वो होते हैं भकूट दोष, मांगलिक दोष, संतान योग, और नाड़ी दोष (Nadi Dosh) आदि । जिनमे से मांगलिक दोष और भकूट दोष का हम पहले विस्तार से वर्णन कर चुके हैं आप वहां से ज्ञानार्जन कर सकते हैं आज हम जिस महत्वपूर्ण विषय के बारे में जानेंगे वो है नाड़ी दोष । जिसके कारण विवाह पश्चात काफी परेशानियाँ होती हैं
गुण मिलान की प्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से एक है ‘नाड़ी दोष’ जिसे सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष बनने से निर्धनता आना, संतान न होना और वर अथवा वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है। आइये जानते हैं नाड़ी क्या है ?
१) आदि नाड़ी
२) मध्य नाड़ी
३) अन्त्य नाड़ी
प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल २७ होते हैं तथा इनमें से किन्हीं ९ विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। तीन नाड़ियों में आने वाले नक्षत्र इस तरह हैं।
१) ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।
२) पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।
३) स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, अश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।
वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है। सभी दोषों में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी ८ अंक की हानि होती है। इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाती है।
यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक संबंध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलने पर कन्या और वर दोनों की कुंडली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुंडली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है।
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नजदीक होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है। आयुर्वेद के अन्तर्गत आदि, मध्य और (and) अन्त्य नाड़ियों को वात, पित्त एवं कफ की संज्ञा दी गई है।
१) यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष (Nadi Dosh) नहीं माना जाता है।
२) यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
३) वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न हों तो नाड़ी दोष नहीं माना जाता है।
अगर अज्ञानतावश नाड़ी दोष (Nadi Dosh) उपस्थित होने पर भी विवाह हो जाए तो निम्न उपाय किये जा सकते हैं तथा मध्य नाड़ी दोष निवारण भी निम्न के द्वारा किया जा सकते हैं ।
स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्नदान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण-प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
ब्राह्मण को स्वर्ण का दान देने से भी नाड़ी दोष शांत होता है। अपने जन्मदिन पर अपने वजन के बराबर अन्न का दान करने पर नाड़ी दोष के प्रभावों से शांति मिलती है। समय-समय पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर वस्त्र दान करने से भी नाड़ी दोष के प्रभावों को शांत किया जा सकता है।
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