जन्मकुंडली अध्ययन

रत्न के लिए ज्योतिष्य परामर्श क्यों आवश्यक है ?

रत्न उनके प्रकार और धारण करने की विधि:

अक्सर हम ये देखते हैं की ज्यादातर मनुष्य अपनी इच्छानुसार कोई सा भी रत्न धारण कर लेते है परन्तु ऐसा नहीं करना चाहिए क्यों की हर किसी की राशि, ग्रहों और उनके स्वाभाव के अनुसार ही रत्नो का निर्धारण करना चाहिए अन्यथा हम जो मन में सोचकर रत्न को धारण करते है वो वैसा फल नहीं देते है । अतः हमारी आपको सलाह और यही विनती है की जब भी रत्न धारण करें ज्योतिष्य परामर्श जरूर लें ।

आज हम आप से बात करने वाले हैं रत्नो के बारे में, जैसे की रत्न कितने प्रकार के होते हैं, किस राशि या नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को कौन सा तथा किस दिन रत्न पहनना चाहिए और (and) उसको पहनने से पहले क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए ।

इन सभी पहलुओं पर विचार करना अति आवश्यक हैं ताकि आने वाले समय में रत्नो से होने वाले लाभ से आप वंचित न रहें ।

रत्न एक प्रकार के बहुमूल्य पत्थर होते हैं जो बहुत प्रभावशाली और आकर्षक होते हैं। रत्न अपने ख़ास गुणों के कारण आभूषण निर्माण, फैशन और ज्योतिष आदि जैसे कार्यो में प्रयोग में लाये जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न में दैवीय ऊर्जा समाहित होती है, जिनसे मनुष्य जीवन का कल्याण होता है। रत्न को प्रायः “रत्ती” के द्वारा इंगित किया जाता है।

प्राचीन काल से रत्नों का उपयोग आध्यात्मिक क्रियाकलापों और उपचार के लिए किया जाता रहा है। रत्न शक्तियों का भण्डार होता हैं, जो शरीर में स्पर्श के माध्यम से प्रवेश करता है। रत्न सकारात्मक या नकारात्मक रूप से धारण करने वाले पर असर दिखा सकता है– यह उपयोग में लाये जाने के तरीके पर निर्भर करता है। सभी रत्नों में अलग-अलग चुम्बकीय शक्तियाँ होती हैं। इनमें से कई रत्न उपचार के दृष्टिकोण से हमारे लिए बहुत लाभदायक हैं।

क्या कारण हैं रत्न धारण करने का ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखें तो हर ग्रह का संबंध किसी न किसी रत्न से होता है और वैसे ही हर रत्न का किसी न किसी ग्रह से जुड़ा होता है। जैसे सूर्य का संबंध माणिक्य रत्न से, चन्द्रमा का मोती से, बुध का पन्ना से, गुरु का पुखराज से, शुक्र का हीरा से, शनि का नीलम से, राहू का गोमेद से और केतु का लहसुनिया से।

किसी भी मनुष्य के जीवन में भाग्य परिवर्तन जन्मपत्री में ग्रहों की दशा के अनुसार आता रहता है। अशुभ ग्रहों को शुभ बनाना या फिर शुभ ग्रहों को अपने लिए और (and) अधिक शुभ बनाने की मनुष्य की हमेशा ही चेष्टा रही है जिसके लिए वो अनेकों उपाय करता रहता है, जैसे कि मंत्रों का जाप, स्नान, रत्न धारण, दान-पुण्य, यंत्र धारण आदि। इन सब में रत्न धारण करना एक महत्वपूर्ण एवं असरदार उपाय माना जाता है। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव से रोगों का निवारण भी करते हैं। अतः जन्म और नाम की तारीख के अनुसार रत्न को धारण करना चाहिए तथा ये भी विचार करना आवश्यक है की राशि के अनुसार कौन सा रत्न पहनना चाहिए ।

रत्नो को उनकी उत्पत्ति के आधार पर ३ प्रकार से जाना जाता हैं :

१) प्राणिज रत्न जो की जीव-जंतुओं के शरीर से प्राप्त होते हैं, जैसे गजमुक्ता, मूंगा इत्यादि।
२) वनस्पतिक रत्न जो की वनस्पतियों से प्राप्त, जैसे वंशलोचन, तृणमणि इत्यादि।
३) खनिज रत्न जो की प्राकृतिक रचनाओं अर्थात चट्टान, भूगर्भ, समुद्र आदि से प्राप्त किए जाते हैं।

आइये जानते हैं रत्नो का धारण करने के पहले तथा बाद में किन मुख्य बिन्दुओ से अवगत होना जरुरी हैं तथा किस रत्न का किस गृह से सम्बन्ध हैं और किस रत्न को कितने दिन बाद बदलना चाहिए –

१) माणिक्य – सम्बन्ध सूर्य से – यह जितना बड़ा धारण किया जाए उतना ही उत्तम होता है। ३ रत्ती से कम वजन का माणिक्य धारण करना निष्क्रिय होता है तथा माणिक्य जड़े जाने वाली सोने की अंगूठी का वजन ५ रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। माणिक्य का प्रभाव अंगूठी में जड़ाने के समय से ४ वर्षों तक रहता है, तदुपरांत दूसरा माणिक्य जड़वाना चाहिए।

२) मोती – सम्बन्ध चन्द्र से – अंगूठी में धारण करने के लिए ४ रत्ती का श्रेष्ठ मोती लेना चाहिए। इसके लिए अंगूठी भी सोने या चांदी की होनी चाहिए। अन्य धातु की नहीं। अन्य धातु की अंगूठी होने से लाभ के बदले हानि होने लगती है। चांदी की अंगूठी का वजन भी ४ रत्ती से कम नहीं होना चाहिए।

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३) मूंगा – सम्बन्ध मंगल से – कम से कम ८ रत्ती के मूंगे को कम से कम ६ रत्ती वाले वजन के सोने की अंगूठी में मढ़वाना चाहिए, वजन इससे कम न हो, अधिक हो तो श्रेष्ठ है। अंगूठी के मूंगे का प्रभाव इसे अंगूठी में जड़वाने के दिन से ३ वर्ष ३ दिन तक रहता है, इसके बाद दूसरा नया मूंगा धारण करना चाहिए।

४) पन्ना – सम्बन्ध बुध से – ३ रत्ती से छोटा पन्ना कम प्रभावशाली, ३ से ६ रत्ती का पन्ना मध्यम प्रभावशाली व ६ रत्ती से बड़ा पन्ना अधिक प्रभावशाली माना गया है। इसे भी सोने की ही अंगूठी में धारण करना चाहिए। इसका प्रभाव अंगूठी में जड़ाने के दिन से ३ वर्ष तक रहता है। इसके बाद दूसरा पन्ना धारण करना चाहिए।

५) पुखराज – सम्बन्ध बृहस्पति से – ४ रत्ती से कम वजन का पुखराज फलदायी नहीं होता। इसे भी सोने या चांदी की अंगूठी में ही धारण करना चाहिए। अंगूठी धारण करने के दिन से पुखराज का प्रभाव ४ साल ३ माह १८ दिन तक रहता है। तत्पश्चात दूसरा नया पुखराज धारण करना चाहिए।

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६) हीरा – सम्बन्ध शुक्र से – ७ रत्ती या इससे भारी सोने की अंगूठी में १ रत्ती से बड़ा हीरा जड़वाकर पहनने से प्रभावशाली होता है अन्यथा नहीं। हीरा जितना ही बड़ा होगा उतना ही प्रभावशाली है। इसके लिए सोने की ही अंगूठी होनी चाहिए। हीरा धारण करने के दिन से ७ वर्षों तक प्रभावशाली रहता है, तत्पश्चात निष्क्रिय हो जाता है। इसके बाद दूसरा हीरा धारण करना चाहिए।

७) नीलम – सम्बन्ध शनि से – नीलम कम से कम ४ रत्ती वजन का या (or) इससे अधिक श्रेष्ठ प्रभाव वाला होता है। नीलम को पंच धातु या लोहे की अंगूठी में धारण करना चाहिए। वैसे सोने की भी अंगूठी में धारण किया जा सकता है। नीलम धारण करने के दिन से ५ वर्षों तक प्रभावशाली रहता है, तत्पश्चात दूसरा श्रेष्ठ नीलम धारण करना चाहिए।

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८) गोमेदक – सम्बन्ध राहु से – ४ रत्ती से कम वजन का गोमेदक तथा ४ रत्ती से कम वजन की अंगूठी भी निष्क्रिय होती है। यह धारण करने के दिन से ३ वर्षों तक प्रभाव करता है, तत्पश्चात दूसरा गोमेदक धारण करना चाहिए।

९) लहसुनियां/वैदूर्य – सम्बन्ध केतु से – कम से कम ४ रत्ती के वजन की वैदूर्य मणि (लहसुनियां) को कम से कम ७ रत्ती वजन की पंचधातु या लोहे की अंगूठी में मढ़वाकर धारण करना चाहिए। किसी अन्य धातु की अंगूठी में नहीं, किसी भी दशा में अंगूठी ७ रत्ती से कम व वैदूर्य ४ रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। यह पहनने के दिन से ३ वर्षों तक प्रभावशाली रहता है। उसके बाद निष्क्रिय हो जाता है, तत्पश्चात दूसरा लहसुनियां धारण करना चाहिए।

कौन सा रत्न किस ऊँगली में पहनना चाहिए ?

माणिक्य – रविवार – अनामिका अंगुली (Ring finger)
मोती – सोमवार – कनिष्ठिका अंगुली (Little finger)
पीला पुखराज – गुरुवार – तर्जनी अंगुली (Index finger)
सफ़ेद पुखराज – शुक्रवार – तर्जनी अंगुली (Index finger)
लाल मूंगा – मंगलवार – अनामिका अंगुली (Ring finger)
पन्ना – बुधवार – कनिष्ठिका अंगुली (Little finger)
नीलम – शनिवार – मध्यमा अंगुली (Middle finger)
गोमेद – शनिवार – मध्यमा या कनिष्ठिका अंगुली (Little finger)
लहसुनिया- शनिवार – कनिष्ठिका अंगुली (Little finger)

गृह, मंत्र और जप संख्या :

किसी भी गृह से सम्बंधित रत्न को धारण करने से पहले उनका मन्त्र जाप करके रत्न को शुद्ध और सिद्ध जरूर करना चाहिए ताकि आप उसका पूर्ण लाभ ले सकें । इसके लिए आपको उनके मंत्र, मंत्र जप संख्या का पता होना आवश्यक है तो आइये जानते हैं प्रत्येक गृह से सम्बंधित मंत्र तथा मंत्र जप संख्या और (and) बाद में मंत्र जप के दशांश से हवन अवश्य करना चाहिए। बाद में भी जिस भी गृह की महा दशा चल रही हैं उनका प्रत्येक दिन एक माला से मंत्र जप करते रहें ।

ग्रह मंत्र जप संख्या
सूर्य ऊँ सूर्याय नम: ७०००
चंद्रमा ऊँ चं चंद्राय नम: ११०००
मंगल ऊँ अं अंगारकाय नम: १००००
बुध ऊँ बुं बुधाय नम: ९०००
गुरु ऊँ बृं बृहस्पतये नम: १९०००
शुक्र ऊँ शुं शुक्राय नम: १६०००
शनि ऊँ शं शनैश्चराय नम: २३०००
राहु ऊँ रां राहवे नम: १८०००
केतु ऊं कें केतवे नम: १७०००

प्रिय पाठको हमने यहाँ पर आपको महत्वपूर्ण जानकारी देने का पूरा प्रयास किया हैं तथा आगे भी करते रहेंगे ।

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