कथा – पुराणों के अनुसार एक बार सभी देवता संकट में घिर गए और(and) परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे तथा उनकी समस्या का निवारण करने के लिए विनती करने लगे। उस समय भगवान शिव और (and) माता पार्वती अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और(and) गणेश जी के साथ मौजूद थे।देवताओं की समस्या सुनकर भगवान शिव ने अपने पुत्रों से कहा कि तुम दोनों में से इनकी समस्याओं का निवारण कौन कर सकता है। ऐसे में दोनों ने एक ही स्वर में खुद को योग्य बताया। क्यों की दोनों ही किसी प्रकार से एक दुसरे से कम नहीं थे परन्तु भगवान शिव देवताओ की सहायता के लिए केवल एक को ही भेज सकते थे ।
भगवान शिव असमंजस में पड़ गए कि किसे ये कार्य सौंपा जाए। तो ऐसे में भगवान शिव ने एक तरकीब निकाली और(and) अपने पुत्रों से कहा तुम दोनों में से जो (who) सबसे पहले इस पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कर आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा। शिव जी की बात सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठ कर निकल गए।लेकिन(but) गणेश सोचने लगे कि मोषक पर बैठकर वह कैसे इतनी जल्दी पृथ्वी की परिक्रमा कर पाएंगे।बहुत सोच-विचार के बाद वे अपने स्थान से उठे और(and) अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके अपने स्थान पर वापस बैठ गए और(and) कार्तिकेय के आने का इंतजार करने लगे।
भगवान शिव ने गणेश जी से परिक्रमा न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक है। उनके इस जवाब से भगवान शिव भी प्रसन्न हो गए और(and) उन्हें देवता की मदद करने का कार्य सौंपा।साथ ही ये भी कहा कि हर चतुर्थी के दिन जो (who) तुम्हारी पूजा और(and) उपासना करेगा उसके सभी कष्टों का निवारण हो जाएगा। कहते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत कथा पढ़ने और(and) सुनने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है। और(and) मनुष्य आनंदचित्त होकर समय व्यतीत करता है । तभी से श्री गणेश जी को देवो में सर्व प्रथम पूजा जाता है ।
जग सुखी तो हम सुखी
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राधे राधे
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