Shattila Ekadashi: षटतिला एकादशी विधि व व्रत कथा

Shattila Ekadashi:

Shattila Ekadashi Vrat I षटतिला एकादशी व्रत

Shattila Ekadashi – एकादशी तिथि प्रत्येक महीने में दो बार आती है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में । माघ मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस वर्ष यह एकादशी २८ जनवरी २०२२ को है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तिल चढ़ाते और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन तिल का दान स्वर्ण दान के बराबर होता है। कहते हैं कि ऐसा करने वालों को भगवान विष्णु की कृपा होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तथा एकादशी के व्रत करने वाले मनुष्य अंत में बैकुंठ को जाते हैं | तो आइये जानते हैं पूजा, व्रत एवं अन्य विधियां |

शुभ मुहूर्त-

षटतिला एकादशी तिथि २७ जनवरी को रात ०२ बजकर १६ मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि २८ जनवरी की रात ११ बजकर ३५ मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में एकादशी व्रत उदया तिथि (सूर्य उदय) में २८ जनवरी को रखा जाएगा।

व्रत पारण का समय-

एकादशी व्रत पारण का शुभ समय २९ जनवरी, शनिवार को सुबह ०७ बजकर ११ मिनट से सुबह ०९ बजकर २० मिनट है।

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) पर तिल का महत्व

अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और(and) हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।

1.  तिल के जल से स्नान करें
2.  पिसे हुए तिल का उबटन करें
3.  तिलों का हवन करें
4.  तिल मिला हुआ जल पीयें
5.  तिलों का दान करें
6.  तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) व्रत पूजा विधि-

1. इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठना चाहिए और(and) स्नान करना चाहिए।
2. पूजा स्थल को साफ करके भगवान विष्णु और(and) भगवान कृष्ण की मूर्ति या(or) उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।
3. भक्तों को विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
4. पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और(and) विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
5. प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और(and) फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए।
6. अगली सुबह पूजा के बाद भोजन का सेवन करने के बाद षट्तिला एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए।

षटतिला एकादशी व्रत कथा-

धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अन्नय भक्त थी और(and) श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु(but) वह कभी ब्राह्मण एवं(and) देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए(so) मैंने सोचा कि(that) यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत:(so) मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया और(and) भोजन मांगा। लेकिन(but) उस महिला ने दान में भोजन देने से इनकार कर दिया और(and) भगवान को गरीब समझकर भगा दिया।

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भिखारी बार-बार खाना मांगता रहा। परिणामस्वरूप, महिला ने भगवान कृष्ण का अपमान किया जो एक भिखारी के रूप में थे और(and) गुस्से में भोजन देने के बजाय भीख की कटोरी में एक मिट्टी की गेंद डाल दी। यह देखकर उसने महिला को धन्यवाद दिया और(and) वहां से निकल गया। जब(when) महिला वापस अपने घर लौटी, तो(then) वह यह देखकर हैरान रह गई कि(that) घर में जो भी खाना था, वह सब मिट्टी में परिवर्तित हो गया। यहां तक कि उसने जो कुछ भी खरीदा वह भी केवल मिट्टी में बदल गया। भूख के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उसने इस सब से बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की।

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महिला के अनुरोध को सुनकर, भगवान कृष्ण उसके सपनों में प्रकट हुए और (and) उसे उस दिन की याद दिलाई जब(when) उसने उस भिखारी को भगा दिया था और(and) जिस तरह से उसने अपने कटोरे में भोजन के बजाय मिट्टी डालकर उसका अपमान किया था। भगवान कृष्ण ने उसे समझाया कि इस तरह के काम करने से उसने अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित किया और(and) इस कारण ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं। उन्होंने उसे षट्तिला एकादशी के दिन गरीबों और(and) जरूरतमंदों को भोजन दान करने की सलाह दी और(and) व्रत रखने को भी(also) कहा। महिला ने एक व्रत का पालन किया और(and) साथ ही जरूरतमंद और(and) गरीबों को बहुत सारा भोजन दान किया और(and) इसके परिणामस्वरूप उसे सभी सुखों की प्राप्ति हुई। इसलिए(so) हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो(who) व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और(and) तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

आरती :

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