विवाह भाग्य में कितने हैं कैसे जाने ?

विवाह भाग्य में कितने हैं कैसे जाने ?

मुझे ये देखकर बहुत ही कष्ट का अनुभव होता है क्यों की इसके कारण बहुत से लोग प्रभवित होते हैं । कुछ जानबूझकर कुछ अनजाने में । vivah I विवाह

आजकल समाज में बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है विवाह सम्बन्ध विच्छेद, जिसके बहुत से कारण होते है ये बहुत ही संवेदनशील विषय है जिससे दो परिवारों में अशांति हो जाती है और आने वाली पीढ़ी (निर्दोष बच्चे) भी इसके कारण अपना जीवन कष्ट में जीने को बाध्य हो जाते हैं ।

मिथ:

आम तौर पर लोगो को लगता है की ये लड़के की गलती है ये लड़के की गलती है परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है ये सब होता है कुंडली में बन रहे योग के कारण ।

जातक की जन्मकुंडली का सटीक विश्लेषण किया जाए तो यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि संबंधित स्त्री या पुरुष की कितनी पत्नी या कितने पति होंगे। क्या जातक एक से अधिक विवाह करेगा और करेगा तो किन परिस्थितियों में करेगा ।

तो आइए आज जानते हैं विवाह विच्छेद के कारण और इस संबंध में क्या कहते हैं ग्रह योग। कोशिश करते हैं समाधान करने की ताकि बहुत से लोगों का जीवन सुखमय बना रहे ।

कुंडली विश्लेषण : 

विवाह और संबंधों का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। विवाह संबंधों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति kundali I जन्मकुंडलीदेखी जाती है। उसके साथ अन्य ग्रहों की युति से स्त्री या पुरुष संख्या का पता लगाया जा सकता है।

१) सप्तम स्थान जीवनसाथी का भाव होता है। इस स्थान में यदि बृहस्पति और बुध साथ में बैठे हों तो व्यक्ति की एक स्त्री होती है। यदि सप्तम में मंगल या सूर्य हो तो भी एक स्त्री होती है।

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२) लग्न का स्वामी और सप्तम स्थान का स्वामी दोनों यदि एक साथ प्रथम या फिर सप्तम स्थान में हों तो व्यक्ति की दो पत्नियां होती हैं। उदाहरण के लिए यदि लग्न सिंह हो तो उसका स्वामी सूर्य हुआ और सप्तम स्थान कुंभ का स्वामी शनि हुआ। यदि सूर्य और शनि दोनों प्रथम या सप्तम स्थान में हों तो दो स्त्रियों से विवाह होता है। या स्त्री की कुंडली है तो दो विवाह होते हैं। ऐसा समझना चाहिए।

३) सप्त स्थान के स्वामी के साथ मंगल, राहु, केतु, शनि छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो एक स्त्री की मृत्यु के बाद व्यक्ति दूसरा विवाह करता है।

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४) यदि सप्तम या अष्टम स्थान में पापग्रह शनि, राहु, केतु, सूर्य हो और (and) मंगल 12वें घर में बैठा हो तो व्यक्ति के दो विवाह होते हैं।

५) लग्न, सप्तम स्थान और चंद्रलग्न इन तीनों में द्विस्वभाव राशि यानी मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो जातक के दो विवाह होते हैं।

६) लग्न का स्वामी 12वें घर में और द्वितीय घर का स्वामी मंगल, शनि, राहु, केतु के साथ कहीं भी हो तथा सप्तम स्थान में कोई पापग्रह बैठा हो तो जातक की दो स्त्रियां होती हैं। स्त्री की कुंडली में यह फल पुरुष के रूप में लेना चाहिए।

७) शुक्र पापग्रह के साथ हो तो जातक के दो विवाह होते हैं।

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८) धन स्थान यानी दूसरे भाव में अनेक पापग्रह हों और द्वितीस भाव का स्वामी भी पापग्रहों से घिरा हो तो तीन विवाह होते हैं।

९) यदि सप्तमेश और एकादशेश एक ही राशि में हों अथवा एक दुसरे पर परस्पर दृष्टि रखते हों या एक दूसरे से पंचम नवम स्थान में हों तो जातक के कई विवाह होते हैं।
१०) यदि सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो और नवमेश सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश और एकादशेश एक दुसरे से केंद्र में हो तो जातक के एक से अधिक विवाह होंगे।
११) यदि द्वितीय भाव और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश के ऊपर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पति/पत्नी की मृत्यु के कारण जातक को तीन या उससे भी अधिक बार विवाह करना पड़ सकता है।

शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है?

१) यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है।

२) यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है।

३) यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है।

४) यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए। मूल नक्षत्रों के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप यहाँ से  पढ़ सकते हैं 

५) यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है।

तलाक क्यों हो जाता है?

१)- यदि कुंडली मांगलीक होगी तो विवाह होकर भी तलाक हो जाता है. किन्तु ध्यान रहे किसी भी हालत में सप्तमेश को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए।

२) दूसरे भाव का स्वामी यदि नीचस्थ लग्नेश के साथ मंगल अथवा शनि से देखा जाता होगा तो तलाक हो जाएगा. किन्तु मंगल अथवा शनि को लग्नेश अथवा द्वितीयेश नहीं होना चाहिए।

३) यदि जन्म कुंडली का सप्तमेश सप्तमांश कुंडली का अष्टमेश हो अथवा जन्म कुंडली का अष्टमेश सप्तमांश कुंडली का लग्नेश हो एवं दोनों कुंडली में लग्नेश एवं सप्तमेश अपने से आठवें घर के स्वामी से देखे जाते हो तो तलाक निश्चित होगा।

४) यदि पत्नी का जन्म नक्षत्र ध्रुव संज्ञक हो एवं पति का चर संज्ञक तो तलाक हो जाता है. किन्तु किसी का भी मृदु संज्ञक नक्षत्र नहीं होना चाहिए।

५) यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है. किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए. या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए।

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सौरभ शुक्ल
ज्योतिष शास्त्री
जग सुखी तो हम सुखी |

प्रेम से बोलो राधे राधे

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