संतान प्राप्ति के उपाय | संतान प्राप्ति मंत्र (santap prapti mantra)
आज के समय में संतान प्राप्ति (santan prapti) कई दम्पत्तियों के लिए एक सपना बन गया है | जिसके विभिन्न कारण होते हैं जो आपकी कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकते हैं अतः विवाह पूर्व जन्मकुंडली मिलान आवश्यक हैं अथवा बाद में भी कुंडली के अवलोकन अवश्य करना चाहिए की कहीं कुंडली में किसी गृह के कारण तो संतान प्राप्ति में कोई बाधा नहीं हो रही हैं | एक स्त्री माँ बन कर सार्थक होती है और पिता बन कर पुरुष गौर्वान्तित होता है। इसके विपरीत जो स्त्री- पुरुष दाम्पत्य जीवन को जीते है पर माँ- बाप नहीं बन पाते वह जीवन अधुरा ही अनुभव करते है।
१) जन्मकुंडली में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि पत्नी की कुंडली में संतान कारक बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या पंचम, सप्तम और नवम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है।
२) पंचमेश से 5/6/10 में यदि केवल पापग्रह हो तो उसको संतान नहीं होती, हो भी तो जीवित नहीं रहती हैं।
३) पंचम भाव नवमांश पर जितने पापग्रह की दृष्टि हो उतने गर्भ नष्ट होते हैं किन्तु यदि उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो।
४) पंचम भाव में केवल मंगल का योग हो तो संतान बार-बार होकर मर जाती है। यदि गुरु या शुक्र की दृष्टि हो तो केवल एक संतति नष्ट होती है और अन्य संतति जीवित रहती है।
५) बंध्या योग, काक बंध्या योग, विषय कन्या योग, मृतवत्सा योग, संतित बाधा योग एवं गर्भपात योग स्त्रियों की कुंडली में होकर उन्हें संतान सुख से वंचित कर देते हैं।
१) लगन और चंद्र लगन से पंचम एवं नवम स्थान से पापग्रहों के बैठने से तथा उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। लगन, पंचम, नवम तथा पुत्रकारक गुरु पर पाप प्रभाव हो लगन से पंचम स्थान में तीन पाप ग्रहों और उन पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। आठवें स्थान में शनि या सूर्य स्वक्षेत्री हो। तीसरे स्थान पर स्वामी तीसरे ही स्थान में पांचवें या बारहवें में हो और पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान में चला गया हो।
२) जिस महिला जातक की कुंडली में लगन में मंगल एवं शनि इकट्ठे बैठे हों। लगन में मकर या कुम्भ राशि हो। मेष या वृश्चिक हो और उसमें चंद्रमा स्थित हो तथा उस पर पापग्रहों की दृष्टि हो।
३) पांचवें या सातवें स्थान में सूर्य एवं राहू एक साथ हों। पांचवें भाव का स्वामी बारहवें स्थान में व बारहवें स्थान का स्वामी पांचवें भाव में बैठा हो और इनमें से कोई भी पाप ग्रह की पूर्ण दृष्टि में हो।
४) आठवें स्थान में शुभ ग्रह स्थित हो साथ ही पांचवें तथा ग्यारहवें घर में पापग्रह हों। सप्तम स्थान में मंगल-शनि का योग हो और पांचवें स्थान का स्वामी त्रिक स्थान में बैठा हो।
५) पंचम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमें राहू की उपस्थिति हो या राहू पर मंगल की दृष्टि हो। शनि यदि पंचम भाव में स्थित हो और चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि में हो और पंचम भाव का स्वामी राहू के साथ स्थित हो।
६) मंगल दूसरे भाव में, शनि तीसरे भाव में तथा गुरु नवम या पंचम भाव में हो तो पुत्र संतान का अभाव होता है। यदि गुरु-राहू की युति हो। पंचम भाव का स्वामी कमजोर हो एवं लग्न का स्वामी मंगल के साथ स्थित हो अथवा लगन में राहू हो, गुरु साथ में हो और पांचवें भाव का स्वामी त्रिक स्थान में चला गया हो।
७) पंचम भाव में मिथुन या कन्या राशि हो और बंधु मंगल के नवमांश में मंगल के साथ ही बैठ गया हो और राहू तथा गुलिक लगन में स्थित हो। आदि-आदि कई योगों का वर्णन ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है जो संतति सुख हानि करता है तथा कुंडली मिलान करते समय सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए इन्हें विचार में लाना अति आवश्यक होता है।
८) पति या पत्नी में से किसी एक की कुंडली में संतानहीनता योग होता है तो दाम्पत्य जीवन नीरस हो जाता है। अनुभव में यह भी नहीं पाया गया है कि संतानहीनता योग वाली महिला की शादी संतति योग वाले पुरुष के साथ की जाए अथवा संतानहीन योग वाले पुरुष की शादी संतित योगा वाली महिला के साथ की जाए और इस प्रकार का कुयोग दूर हो जाए लेकिन यह कुयोग नहीं कटता और जीवन भर संतान का अभाव बना रहता है। ऐसी स्थिति में ईश कृपा, देव कृपा या संत कृपा ही इस कुयोग को काट सकती है।
संतान ना होने पर दम्पति मन्नत मांगते हैं । श्रद्धा के साथ काम सार्थक होते है राह भी निकलती है, ऐसे में ज्योतिष उपाय करना बहुत ज्यादा फलप्रदायनी होता है।
१) षष्ठी देवी का जप पूजन एवं स्त्रोत पाठ आदि का अनुष्ठान पुत्रहीन व्यक्ति को सुयोग पुत्र संतान देने में सहायक होता है।
२) संतान गोपाल मंत्र- ॐ क्लीं ॐ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि ने तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ का जप एवं संतान गोपाल स्रोत का नियमित पाठ भी संतति सुख प्रदान करने वाला होता है। किसी कन्या के ग्रह इस प्रकार के हो तो उसे संतान गोपाल मन्त्र के सवा लाख जप शुभ- मुहर्त पर आरम्भ करें। इसके साथ ही गोपालमुकुंद और लड्डू गोपाल जी का पूजन करें। उनको माखन- मिश्री का भोग लगा, गणपति का पूजन शुद्ध धी का दीपक जला के करें।
३) इसके अतिरिक्त भगवान शिव की आराधना एवं जप, पूजा, अनुष्ठान, कन्या दान, गौदान एवं अन्य यंत्र-तंत्र तथा औषधियां अपनाने से भी संतति सुख प्राप्त किया जा सकता है।
४) गुरु, माता-पिता, ब्राह्मण, गाय आदि की सेवा, पुण्य, दान, यज्ञ आदि संतानहीनता को मिटाने वाले होते हैं।
५) नवरात्रि में सर्ववाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यों मत्प्रसादेन भवि यति न संशय:।।
इस मंत्र से दुर्गा सप्तशती का नवचंडी या शतचंडी पाठ का अनुष्ठान भी संतान सुख देता है।
६) सरल उपाय है की सपत्नीक केले के वृक्ष के नीचे बालमुकुंद भगवान की पूजा करें।
७) कदली वृक्ष का पूजन करें और गुड़, चने का भोग लगाए। इक्कीस गुरुवार पूजन वर्त करने से संतान प्राप्ति होती है। 11 प्रदोष का व्रत करें, प्रत्येक प्रदोष को भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से संतान की प्राप्त होती है। चौथा उपाए: गरीब बालक, बालिकाओं को गोद लें, उन्हें पढ़ाएं, लिखाएं, वस्त्र, कापी, पुस्तक, खाने पीने का खर्चा दो वर्ष तक उठाने से संतान की प्राप्त होती है। पांचवां उपाए: आम, बील, आंवले, नीम, पीपल के पांच पौधे लगाने से संतान की प्राप्ति होती है।
हरिवंश पुराण का पाठ करें। गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें। पंचम-सप्तम स्थान पर स्थित क्रूर ग्रह का उपचार करें। दूध का सेवन करें। सृजन के देवता भगवान शिव का प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन करें। किसी बड़े का अनादर करके उसकी बद्दुआ ना लें। – पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें। गरीबों और असहाय लोगों की मदद करें। उन्हें खाना खिलाएं, दान करें। – किसी अनाथालय में गुप्त दान दें।
स्वान अर्थात कुत्ते को कहते है और काला कुत्ता भैरव का रूप होता है। कुत्ते को धर्म ग्रंथों के अलावा ज्योतिषशास्त्र में एक महत्वपूर्ण पशु के लिए रूप में बताया गया है। माना जाता है कि काला कुत्ता जहां होता है वहां नकारात्मक उर्जा नहीं ठहरती है। इसका कारण यह है कि काले कुत्ते पर एक साथ दो शक्तिशाली ग्रह शनि और केतु के प्रभाव होता है। काले कुत्ते की तरह कौआ भी शुभ फल देने वाला पक्षी माना जाता है।
जूठन भोजन और कर्कश स्वर के कारण भले ही इसे निकृष्ट पक्षी कहें लेकिन, शास्त्रों में कहा गया है कि कौआ ही एक मात्र पक्षी है जिसने अमृत कलश से छलक कर गिरे अमृत का पान किया था। इसे यम का दूत भी कहा जाता है। यह आसमान के रास्ते यमलोक तक पहुंच जाता है और पृथ्वी पर रहने वालों की हर ख़बर यमराज तक पहुंचाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिनकी कुण्डली में पितृ दोष होता है उन्हें संतान सुख में बाधा का सामना करना पड़ता है। कौए को भोजन देने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और पितृ बाधा का प्रभाव कम होता है। शास्त्रों के अनुसार इसका कारण यह है कि पितृ पक्ष में पितरगण भी कौए के रूप में पृथ्वी पर विचरण करते हैं और अपने वंशजों द्वारा ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद, ब्राह्मणों के जूठे पत्तलों से भोजन करते हैं जिससे उन्हें मुक्ति मिलती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ( यदि उस दिन रविवार पड़े तो अच्छा होगा) सूर्यनारायण को जल से अर्घ्य दें, पुष्प आदि से पूजन कर एक फल का भोग अवश्य लगाएं (फल को पूजा के उपरान्त बिना काटे खा लें) और संतान प्राप्ति की कामना प्रकट करें। संभव हो तो एक टाइम बिना नमक का भोजन ग्रहण करें. वर्ष पर्यंत रविवार को व्रत करके व्रत की विधिवत समाप्ति करना चाहिए। ऐसा माना गया है कि सूर्य भगवान की कृपा से प्रभावशाली संतान की प्राप्ति होगी। पापों के प्रायश्चित के लिए ईश्वर से क्षमा मांगें। गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का कम से कम 2500 बार जाप करें और अंत में हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं। यदि बार-बार गर्भपात होता हो तो मंदिर व जहां धार्मिक कार्यक्रम होता है वहां घी दान देना चाहिए। छोटे बच्चों को भोजन करना चाहिए। किसी पशु पक्षी का घोंसला नहीं तोड़ना चाहिए।
संतान बाधा से मुक्ति के लिए गौरी पूजन करना चाहिए. यह पूजन मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ करके 16 दिन लगातार करें। एक बार ही खाना खाएं यानी प्रतिदिन व्रत रखें। ‘ बंध्यत्व हर गौर्ये नमः ‘ मंत्र का प्रतिदिन 16 हजार या जितनी अधिक बार आप कर सकें, उतनी बार जप करें। अंतिम दिन तिल के तेल से भरा दीपक गौरी के सम्मुख जलाकर रख दें और रात्रि भर जागरण व गौरी भजन-कीर्तन करें। भजन-कीर्तन के उपरान्त 16 ब्राह्मण-ब्राह्मणियों को भोजन करवा कर सभी को वस्त्र आदि का दान दें, और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें। मां गौरी आपकी मनोकामना पूर्ण करेगी।
जग भला तो सब भला
प्रेम से बोलो राधे राधे
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