Maha Shivratri प्रभु शिव की पूजा, आराधना के लिए महाशिवरात्रि को विशेष माना जाता है। शिवरात्रि पर्व मुख्य रूप से साल में दो बार मनाया जाता है। एक फाल्गुन माह में तो दूसरा श्रावण माह में। फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि (Mahasivarathri) कहा जाता है। भगवन शिव के विवाह का दिन महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म में विशेष रूप से मनाया जाता है आइये जानते हैं इस दिन भगवन शिव को प्रसन्न करने के लिए क्या क्या किया जाता है ?
इस दिन भगवन शिव को गंगा जल चढ़ाया जाता है जो की भक्तजन पैदल कावड़ में भरकर गंगा जी से सीधे अपने घर लाते हैं और शिवजी को चढ़ाते हैं । भगवन शिव को बेलपत्र, धतूरा, बेर, दूध, आदि भी चढ़ाया जाता है । भगवन शिव जिस पर प्रसन्न होते हैं उनकी सब मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं ।
१ मार्च को ये शिवरात्रि तिथि सुबह ३ बजकर १६ मिनट से शुरू होकर बुधवार २ मार्च को सुबह १० तक रहेगी। रात्रि की पूजा शाम को ६ बजकर २२ मिनट से शुरू होकर रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है
पहले पहर की पूजा- १ मार्च, २०२२ शाम ६:२१ मिनट से रात्रि ९:२७ मिनट तक ।
दूसरे पहर की पूजा- १ मार्च रात्रि ९:२७ मिनट से १२:३३ मिनट तक ।
तीसरे पहर की पूजा- १ मार्च रात्रि १२:३३ मिनट से सुबह ३:३९ मिनट तक।
चौथे प्रहर की पूजा- २ मार्च सुबह ३:३९ मिनट से ६:४५ मिनट तक।
व्रत पारण का शुभ समय- २ मार्च, २०२२ दिन बुधवार को ६ बजकर ४६ मिनट तक रहेगा।
महाशिवरात्रि के दिन सबसे पहले शिवलिंग में चन्दन के लेप लगाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराएं। केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं।
पूरी रात्रि दीप और कर्पूर जलाएं।
पूजा करते समय ‘ऊं नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
शिव को बिल्व पत्र और फूल अर्पित करें। तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं।
शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति दें।
होम के बाद किसी भी एक साबुत फल की आहुति दें।
सामान्यतया लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं।
सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इतना ही नहीं चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी अलग हैं जानें…
प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’
दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’
तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’
चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।। मंत्र का जाप करना चाहिए।
इसके साथ ही व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए और स्तोत्र पाठ करना चाहिए। अंत में भगवान शिव से भूलों के लिए क्षमा जरूर मांगनी चाहिए।
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