ज्योतिष के हिसाब से महीनो को १२ भागों में बांटा गया हैं जो(which) इस प्रकार हैं
१) चैत्र
२) बैसाख
३) ज्येष्ठ
४) आसाढ़
५) श्रावण
६) भाद्रपद
७) आश्विन
८) कार्तिक
९) मार्गशीष
१०) पौष
११) माघ
१२) फाल्गुन
१ – प्रतिपदा
२ – द्वितीया
३ – तृतीया
४ – चतुर्थी
५ – पंचमी
६ – षष्ठी
७ – सप्तमी
८ – अष्टमी
९ – नवमी
१० – दशमी
११ – एकादशी
१२ – द्वादशी
१३ – त्रियोदशी
१४ – चतुर्दशी
१५ – पौर्णमाशी
३० – अमावस्या
तिथियों को उनके स्वाभाव के आधार पर ५ भागों में बाटा गया है
१ पड़वा, ६ छठ, ११ एकादशी – ये नंदा तिथि हैं
२ दोयज, ७ सातें, १२ द्वादशी – ये भद्रा तिथि हैं
३ तीज, ८ आठें, १३ त्रियोदशी – ये जया तिथि हैं
४ चौथ, ९ नवमी, १४ चतुर्दशी – ये रिक्त तिथि हैं
५ पंचमी, १० दशमी, १५ पूनो, ३० अमावस्या – ये पूर्णा तिथि हैं
नक्षत्रों को कुल २८ भागों में बाटा गया है
१) अश्वनी
२) भरणी
३) कृतिका
४) रोहिणी
५) मृगशिरा
६) आद्रा
७) पुनर्वसु
८) पुष्प
९) अश्लेषा
१०) मघा
११) पूर्वा फाल्गुनी
१२) उत्तरा फाल्गुनी
१३) हस्त
१४) चित्रा
१५) स्वाति
१६) विशाखा
१७) अनुराधा
१८) ज्येष्ठा
१९) मूल
२०) पूर्वाषाढ़
२१) उत्तराषाढ़
२२) अभिजीत
२३) श्रवण
२४) धनिष्ठा
२५) शतभिषा
२६) पूर्वाभाद्रपद
२७) उत्तरा भाद्रपद
२८) रेवती
ऋतुओं को भारत में छः भागों में बाटा गया है
एक एक ऋतु २ महीने वर्तमान रहती है बैशाख ज्येष्ठ में वसंत ऋतु होती है | आषाढ़ श्रावण में ग्रीष्म ऋतु होती, भाद्रपद आश्विन में वर्षा ऋतु, कार्तिक मृगशिरा में शरद ऋतु, पौष और माघ में हेमंत ऋतु तथा फाल्गुन और चैत्र में शिशिर ऋतु होती है | छः महीने सूर्य उत्तरायण और छः महीने सूर्य दक्षिणायन में रहता है |
उत्तरायण सूर्य में देवताओं का दिन होता है और दक्षिणायन में रात होती है | इसी कारण जितने भी शुभ कार्य होते है उत्तरायण सूर्य में अच्छे होते हैं माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ इन छः महीनो में सूर्य उत्तरायण रहता है | और(and) श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मृगशिरा, पूष इन छः महीनो में सूर्य दक्षिणायन में रहता है | ये संक्रांति के हिसाब है सो पत्र में लिखा रहता है | मीन के संक्रांति के जब ९ अंश जायेंगे तो उसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है | और(and) कन्या की संक्रांति के जब ९ अंश जायेंगे तो(so) सूर्य उसी दिन से दक्षिणायन हो जाता है |
पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र हैं | आग्नेय दिशा के स्वामी अग्नि देव हैं | दक्षिण के यम स्वामी हैं | नैऋतिका के नैऋत्य, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु, उत्तर के कुबेर, ईशान के शिव स्वामी हैं | ये आठों दिशाओं के आठ स्वामी हैं इसी प्रकार उपरोक्त चक्र में जानिए |
वब १, बालव २, कौलव ३, तैतिल ४, गर ५, वणिजु ६, विष्टि ६ |
ये सात करण चर हैं
शकुनि ८, चतुष्पद ९, नाग १०, किंस्तुघ्न ११ |
ये चार करण स्थिर हैं |
१) मेष
२) वृष
३) मिथुन
४) कर्क
५) सिंह
६) कन्या
७) तुला
८) वृश्चिक
९) धनु
१०) मकर
११) कुम्भ
१२) मीन
प्रत्येक नक्षत्र को ज्योतिष में चार भागों में चार अक्षरों के नाम से जाना जाता हैं जो की आप नीचे दिए गए चार्ट से आसानी से ज्ञात कर सकते हैं
प्रिय पाठकों आगे भी ऐसी सूक्ष्म जानकारी साझा करते रहेंगे |
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