व्रत एवं त्यौहार

कब है श्रावण पुत्रदा एकादशी? जानिए व्रत तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और कथा

भगवान विष्णु मंत्र:-

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

 

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

सावन महीने में दो एकादशी व्रत होते हैं. हर एकादशी विशेष मनोरथ को पूरा करने वाली मानी जाती हैI आइये जानते हैं की किस महीने में एकादशी के व्रत रखने से क्या लाभ होता है I क्या है व्रत विधि और कथा आदि इस दिन से जुड़ी पूरी जानकारी I

सभी एकादशी को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया हैI हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं. एक माह के शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में, सभी एकादशियों पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैI हर एकादशी मोक्षदायनी होने के ​साथ – साथ किसी विशेष मनोकामना को पूरा करने वाली होती हैI

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष दो पुत्रदा एकादशी मनाई जाती हैं। पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह में मनाई जाती है वहीं दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल पक्ष में पड़ती है। इस वर्ष सावन मास की पुत्रदा एकादशी 7 अगस्त दिन रविवार को पड़ रही है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लोग संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं तथा भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं।

यहाँ तक कहा जाता है कि श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से संतान प्राप्ति की इच्छा अवश्य पूर्ण होती है। इस दिन निर्जला व्रत रखना भी भक्तों के लिए लाभदायक माना गया है। जो लोग निर्जला व्रत रखने में असमर्थ होते हैं वह फलाहारी व्रत भी रख सकते हैं। वैष्णव समुदाय में इस एकादशी तिथि को पवित्रोपना एकादशी और पवित्र एकादशी के नाम से जाना चाहता है।

शुभ समय:-

एकादशी तिथि प्रारम्भ – एकादशी तिथि का प्रारंभ 7 अगस्त 2022, रविवार रात 11: 50 से शुरू हो रही है और अगले दिन 8 अगस्त को रात बजे तक एकादशी की तिथि रहेगी
पारण समय – 9 अगस्त, मगंलवार सुबह 5 बजकर 46 मिनट से लेकर 8 बजकर 26 मिनट तक

पूजा विधि:-

दशमी की शाम में सूर्यास्त होने के बाद भोजन न करें और भगवान विष्णु का ध्यान करने के बाद सोएंI सुबह उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं और हाथ में पुष्प, अक्षत और दक्षिणा लेकर मुट्ठी बंद करें और व्रत का संकल्प लें की प्रभु आज हम जो व्रत करने जा रहें हैं वो आपको समर्पित है आप इसे स्वीकार करें I इसके बाद ये पुष्प प्रभु के चरणों में छोड़ देंI

अब एक कलश को लाल वस्त्र से बांधें फिर उसकी पूजा करके इस कलश के ऊपर भगवान की प्रतिमा रखेंI प्रतिमा पर जल आदि अर्पित करने के बाद नया वस्त्र पहनाएंI

फिर धूप दीप पुष्प आदि अर्पित कर नैवेद्य चढ़ाएं I

उसके बाद एकादशी की कथा का पाठ करें I पूजन के बाद प्रसाद वितरित करें व ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें और पूरे दिन निराहार रहें अगर संभव न हो तो शाम के समय फलाहार कर सकते हैंI

एकादशी की रात में जागरण करें और भगवान का भजन कीर्तन करते रहेंI दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन खिलाकर और दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक विदा करने के बाद ही अपना व्रत खोलें I                                                                                                                                      

व्रत कथा:-

प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में महीजित नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था I वो राजा काफी शांतिप्रिय, ज्ञानी और दानी था I उस राजा की कोई संतान नहीं थी इस कारण वो अक्सर दुखी रहता था I एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा I तब एक ऋषि ने बताया कि राजन पूर्व जन्म में सावन मास की एकादशी के दिन आपके तालाब से एक गाय जल पी रही थी I आपने उसे वहां से हटा दिया था क्रोधित होकर उस गाय ने आपको संतानहीन होने का श्राप दे दिया था इस कारण ही आपके आज तक कोई संतान नहीं है I
यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करेंगे तो इस शाप का प्रभाव दूर हो जाएगा ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इस व्रत के प्रभाव से कुछ ही समय में रानी गर्भवती हो गईं और उन्होंने एक सुंदर तेजस्वी शिशु को जन्म दिया I पुत्र प्राप्ति से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने हमेशा के लिए एकादशी का व्रत शुरू कर दिया I कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति निःसन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है I
प्रेम से बोलो
ॐ विष्णवे नमः

View Comments

Share
Published by
JanamKundali

Recent Posts